गुरुवार, 27 मई 2021

राजपूतों की उत्पत्ति

राजपूतों की उत्तत्ति के सम्बन्ध में अनेकानेक मत प्रचलित हैं। विशेषकर कतिपय विदेशी इतिहासकारों ने तो इसे अत्यधिक जटिल बना दिया है। कर्नल टॉड, विलियम क्रुक तथा डॉ.वी .. स्मिथ आदि विदेशी इतिहासकारों ने राजपूर्तों को विदेशी जातियों की संतान ही मान लिया है। कर्नल टॉड का मत है कि पाँचवीं और छठी शताब्दी में यहाँ शक, शीथियन, हूण, कुषाण, गूजर और यहूदी जातियाँ आयी थीं। अत्यधिक समय यहाँ रहने के कारण वे हिन्दू धर्म में शामिल-होकर हिन्दू ही बन गयी थीं। इनमें जो 'कबीले शक्तिशाली प्रभावशाली थे वे राजपूत बन गये। इस प्रकार वर्तमान राजपूत उन्हीं की सन्तान हैं। इसका प्रमाण देते हुए कर्नल टॉड कहते हैं कि सती प्रथा, अश्वमेध यज्ञ, सूर्य पूजा, शस्तरों तथा घोड़ों की पूजा और मद्यपान आदि प्रथाएँ राजपूतों ने ज्यों - की-त्यों शकों और हृणों से ली हैं। उनका मत है कि पाँचवीं और छठी शताब्दी से पहले राजपूत शब्द का कहीं भी उत्लेख नहीं मिलता। वे चन्देल, राठौड़ और गहर वार आदि वंशों को विदेशियों से उत्पन हुआ मानते हैं।

विलियम क्रुक ने भी उपरोक्त मत का ही समर्थन किया है। डॉ .वी.. स्मिथ ने राजपूतों को मिश्रित जाति माना है। उनका मत है कि राजपूतों के कुछ वंश तो प्राचीन आर्यो तथा कुछ विदेशी जातियों की सन्तान हैं।

डॉ, भण्डारकर ने भी राजपूतों को विदेशियों की ही सन्तान माना है। उनका मत है कि उत्तर पश्चिमी भारतगुजरातमें बसी गूजर जाति जिनका हणों के साथ निकट का सम्बन्ध हैं, स्वयं को राजपूत ही मानते हैं। कन्नौज के प्रसिद्ध राजा मिहिर भोज जो गुर्जर प्रतिहार वंश के थे, को वे गूजर मानते हैं। अपने मत की पुष्टि में वे राजोरगढ़ (अलवर) के अभिलेखों की चर्चा करते हैं जिनमें प्रतिहारों को गूजर तथा राजा मिंहिर भोज को गुजरिश्वर कहा गया है। डॉ. भण्डारकर अपने मत में स्थिर नहीं हैं। एक और तो वे चौहानों को गूजरवंशी तथा दूसरी ओर उन्हें ब्राह्मणवंशी मानते हैं। बीजोलिया (मेवाड़) के शिलालेख से वे सिद्ध करने का प्रयल करते हैं कि बसुदेव का उत्तराधिकारी सामन्त वत्स गोत्रीय ब्राह्मण था इसी प्रकार वे गहलोतों की उत्पत्ति नागर वंशीय ब्राह्मणों से मानते हैं

उपर्युक्त ये सारे-के-सारे मत केवल कल्पना की दौड़ हैं, क्योंकि राजपूतों की जिन प्रथाओं को कर्नल टॉड शकों और हूणों से ली गई बताते हैं, वे प्रथाएँ तो यहाँ वैदिक युग में भी विद्यमान थीं | बैदिक युग में जब अपने पति जलंधर की मृत्युथका समाचार पतित्रता वृन्दा सुनती हैँ तो वह तुरन्त चिता बनाकर सती हो जाती है वीर काल में रावण के बलात्कार करने पर कुशध्वज ऋषि की पुत्री वेदवती अपने अपमान की पीड़ा सहन करके तुरन्त सती हो गयी थीं। रावण की पृत्र-वधू सुलोचना तथा महाभारत काल में पांडु की पत्नी माद्री का सठी होना भी इतिहास प्रसिद्ध है इसी तरह श्रीकृष्ण साथ उनकी आटों पटरानियाँ तथा बलराम के साथ रेवती सती हुई थी-- विष्णु पुराण 5-38-25 अत: सती प्रथा शकों और हूणों की नहीं, बल्कि यह तो प्राचीन आर्यों की गौरवपूर्ण प्रथा थी ओझा तथा डॉ. सी.वी. वैद्य आदि सभी इतिहासकार इसी मत को  मानते हैं। अश्वमेध यज्ञ और राजसूय यज्ञ भी प्राचीन आर्यों की प्रथाएँ हैं रामायण काल में राजा जनक ने सीता स्वयंवर यज्ञ, भगवान राम से अश्वमेध यज्ञ तथा महाभारत काल में राजा द्रुपद ने द्रौपदी स्वयंदर यज्ञ तथा युधिष्ठिर ने राजसूव यज्ञ किये थे | इसी पूजा शास्त्रों तथा अश्वमेध यज्ञ जिसे कर्नल टॉड घोड़ों की पूजा कहते हैं प्राचीन समय में भी विद्यमान थी मच्पान प्राचीन समय में केवल असुर ही किया करते थे, किन्तु यह प्रथा धीरे-धीरे समाज में फैल गयी

इतिहासकारों ने राजपूतों को विदेशियों की सन्तान बताने का सबसे बड़ा कारण छटा शताब्दी पहले किसी भी प्राचीन ग्रंथ या शिलालेख में राजपूत शब्द को चचा नहीं मिलती, बल्कि उनमें राजपुत्र की ही चर्चा मिलती है वे राजपूत और राजपुत्र का अपश्रंश राजपूत में राज्य विभाजन नहीं होता था अत: राजा का ज्येष्ठ पृत्र

सम्पूर्ण राज्य का अधिकारी होता था और वह राजा कहलाता था उसके शेष पत्र राजा के पुत्र होन के कारण राजपुत्र कहलाते थे कालान्तर में राजपुत्र शब्द समूह वाचक या जाति वाचक शब्द बन गया ओर धीरे-धीरे सारी क्षत्रिय जाति को ही राजपृत कहा जाने लगा दूसरा कारण प्रजा की रक्षा राज्य करता है राज्य का स्वामी राजा होता है इसी अकार राजा की सन्तान राजपूत कहलाने लगे जैसे राजपूतों की एक उपाधि ठाकुर होने

के कारण इस जाति को कहीं-कहीं पर ठाकुर जाति भी कहा जाता है

राजपूत हिन्दी का शब्द है यह संस्कृत शब्द राजपुत्र का अप्रभ्रंश है यह भाषा विज्ञान से प्रमाणित होता है कि पुत्र शब्द का ही अपश्रंश पूत है प्राचीन ग्रंथों में राजपतों के लिए राजपुत्र, राजन्य, बाहुज आदि शब्द मिलते हैं

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