शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

महाराणा प्रताप पर एक कविता

महाराणा प्रताप
















राणा प्रताप इस भरत भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है। 
राणा प्रताप आज़ादी का, अपराजित काल विधायक है।। 
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य। 
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य।। 
राणा प्रताप की खुद्दारी, भारत माता की पूंजी है। 
ये वो धरती है जहां कभी, चेतक की टापें गूंजी है।। 
पत्थर-पत्थर में जागा था, विक्रमी तेज़ बलिदानी का। 
जय एकलिंग का ज्वार जगा, जागा था खड्ग भवानी का।। 
लासानी वतन परस्ती का, वह वीर धधकता शोला था। 
हल्दीघाटी का महासमर, मज़हब से बढकर बोला था।। 
राणा प्रताप की कर्मशक्ति, गंगा का पावन नीर हुई। 
राणा प्रताप की देशभक्ति, पत्थर की अमिट लकीर हुई। 
समराँगण में अरियों तक से, इस योद्धा ने छल नहीं किया। 
सम्मान बेचकर जीवन का, कोई सपना हल नहीं किया।। 
मिट्टी पर मिटने वालों ने, अब तक जिसका अनुगमन किया। 
राणा प्रताप के भाले को, हिमगिरि ने झुककर नमन किया।। 
प्रण की गरिमा का सूत्रधार, आसिन्धु धरा सत्कार हुआ। 
राणा प्रताप का भारत की, धरती पर जयजयकार हुआ।।

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